Sunday, October 8, 2017

मधेश और मधेशी उपर किए गए नेपाली षड़यन्त्र और चरम विभेद का वास्तविक तथ्य



सन् ८ दिसेम्बर १८१६ के बाद से मधेश और मधेशी उपर किए गए नेपाली षड़यन्त्र और चरम विभेद का वास्तविक तथ्य...
षड़यन्त्र नं. १ :
वि.सं. २०१४, चितवन, में "राप्ती भ्याली विकास योजना(Rv-Dv)"
नतिजा :
२०२७ साल में ३७,००० धर्तीपुत्र थारू मधेशियों को चितवन से भगाकर वहाँ दशगुणा पहाडी/नेपाली पहाड से लाकर बसाया गया |
आज चितवन पूर्णत: नेपालियों के कब्जा में है और थारू लाचार पड़ा है |
षड़यन्त्र नं. २ :
वि.सं. २०२०, "नेपाल पुनर्वास कम्पनी" का स्थापना हुआ
नतिजा :
* नेपाली सरकारद्वारा पहाड़ से नेपालियों को लाकर मुफ्त में अनाज, राज्य से धनकोष और सार्वजनिक जमीन देकर बसाया गया,
* नई बस्तियों में उनके लिए स्कुल और अस्पताल बनवाया गया ।
* जिनको जमीन उपलब्ध नहीं हो सका, उनके लिए नेपाली सरकार जंगल विनास कर १,१६,५५० बिघा मधेशी जमीन उन्हें दे दिया गया।
षड़यन्त्र नं. - ३
जमीन कब्जा पर सरकारी छुट :
नतिजा :
अनधिकृत् रूप में ३,५४,४०० विघा जमीन जंगल फडानी कर पहाडी लोग वैसे ही आकर बस गए, मधेशी लाचार होकर देखता ही रह गया |
षड़यन्त्र नं. - ४
पुनरवास कम्पनी खोलना और मधेशी जमीन कब्जा करना,
असर :
नेपालियोंद्वारा मधेश कब्जा करने के लिए मधेश भर ६ पुनर्वास कम्पनियाँ षड्यन्त्र पूर्वक खोला गया :
१. झापा पुनर्वास कम्पनी
२. सर्लाहि पुनर्वास कम्पनी
३. नवलपरासी पुनर्वास कम्पनी
४. ताराताल पु.क.
५. कैलाली " "
६. कंचनपूर पुनर्वास कम्पनी |
षड़यन्त्र नं. - ५
वन शुद्धिकरण का नाटक :
नतिजा :
"वन शुद्धिकरण" के नाम पर सन् १९९०(वि.सं. ०४७) तक लाखौं पहाडी/नेपालियों को जमीन दे दिया गया |
नेपाली लोग बिना नियम के जंगल कटानी कर उसे बेनामी बताकर कब्जा कर लेते थे और अपना नाम करबा लेते थे। जिसका शिकार पूरव के राजवंशी लोग हुवे ।
षड़यन्त्र नं. - ६
हुलाकी राजमार्ग का बिकल्प महेन्द्र पथका निर्माण,
असर :
हुलाकी मार्ग आसपास मधेशियों का जमीन पहले से था, जहाँ नेपालियों को लाना और बसाना संभव नहीं था | इस तथ्यको देखकर सरकार नें षड़यन्त्र पूर्वक पूर्व-पश्चिम राजमार्ग जंगल के बीचोबीच बनाया ताकि उसके आसपास नेपालियों का बसोबास हो और शहर बसे |
नीजगढ़, बर्दीबास, लालगढ़, पथलैया,
नारायणघाट, ईटहरी, बिर्तामोड़, उर्लाबारी, काकरभिट्टा, बुटवल, कोहलपुर, अतरिया आादि वही नवीन शहर है।
जो राजमार्ग राणा कालमें बना था वह आज भी वैसे ही है लेकिन पहाडी लोक-मार्ग आज पहाड के बिचोविच दौड़ रहा है |
कोशी सम्झौता, काली सम्झौता, गण्डक, कर्णीली जैसे नदियों के सम्झौते से आज मधेशी भूमि पानी विहीन बाँझ पड़ा है | हर अन्तराष्ट्रिय सन्धी सम्झौते से ९०% लाभ नेपालियों को ही मिलता है, बाँकी १०% दिखाने और मधेशी नेताओं को फुसलाने हेतु मधेश को भी देता है | इस तरह हम मधेशी धीरेधीरे कंगाल होते जा रहे हैं | बेघर भुमिहीन बनते जा रहे हैं | श्रोत साधन समाप्त होता जा रहा है | हम लुटते जा रहे हैं | बरवाद होते जा रहे हैं |
बस, स्वतन्त्र मधेश ही है एक विकल्प...

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