मधेश के इस रंङ्गीन मौसम को भी रंङ्गहीन और मातममयी होना
पडा है । कई लोगों ने फेसबूक के सामाजिक सञ्जालों पर इस बार की होली नहीं मनाने की
उद्घोष की थी। मधेश के हर शहर, हर
गाँव, हर चौक चौराहे और हर घर में नेपाली आतातायियों की बुराई हो
रही है, नेपाली शासन का विरोध हो रहा है, एमाले
को मधेश द्रोही कहा जा रहा है तो वहीं पर मधेशी मोर्चा से लोगों का भरोसा उठता नजर
आ रहा है और स्वतन्त्र मधेश से उनकी निष्ठा जुडती जा रही है ।
हजारों की संख्या में अपने शहीदों के सम्मान में मधेशी जनता
राजबिराज से लहान तक शहीद शव यात्रा में भाग ली । समाचारों के अनुसार उस शव यात्रा
में “चल भैया आजादी लें, चल
बहना आजादी लें” बाली भी गीत गुँज रही थी । सहभागी लोगों ने “मधेशियाें
की अस्तित्व के लिए, आजादी की विकल्प नहीं” जैसे
नारे भी लगा रहे थे ।
सबों के हित के लिए अपने भौतिक शरीर को त्यागने का हिम्मत
रखने बाला परिवर्तनवाहक अशरिरी व्यतित्व को ही शहीद कहा जाता है । उनकी एक दर्जा
होती है, सम्मान होती है । वे परिवर्तन के प्रणेता ही नहीं, प्राण
भी होते हैं। देश के वर्तमान होते हैं, समाज
के शान होते हैं और भविष्य के पैगाम होते हैं । आयें, हम
अपने मधेशी शहीदों के बिक्रीयों का हिसाब करते हैं ।
वि. सं. २००८ साल से लगातार हम वे ही मुद्दे ः नागरिकता, स्वायत्तता, समानता, संघीयता, समावेशिता
और समानुपातिकता को लेकर आजतक लडते आए हैं । उन्हीं मुद्दों के लिए सैकडों शहीद
बना डालें, हजारों को अंङ्गभंङ्ग करवा डालें । नेपालगञ्ज और रंगेली
जैसे घटनायें घटा डालें । मधेश के सारे जल, जमीन
और जंङ्गल मिटा डालें । मधेश के २३,०६८
वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल के जमीनों में से १६,०००
वर्ग कि.मी. से अधिक जमीनें अतिक्रमण करवा डालें । ७० प्रतिशत से ज्यादा मधेशी
यूवाओं को खाडी मूल्क पठा डालें । अवसर, रोजगार, व्यापार
तथा कृषियों को चौपट बना डालें । मधेश के हर चौक चौराहे पर सेना, जनपद
तथा सशस्त्र प्रहरी बैठवाकर अपनी असुरक्षा बढा डालें । मधेश के आय और कमाईयों को
भंसार और राजस्व के नामों पर नेपालियों को भेट चढा डालें । भाषा, संस्कृति, परम्परा
और अपनी पहिचान मिटा डालें । कई बार संघर्ष किए, मगर
सारे उपलब्धियों को खो डालें ।
मधेशियों के साथ रहा ः गरीबी, दरिद्रता, बेईज्जती, यातना, विभेद, तिरष्कार, दोहन, गाली, बेरोजगारी, दलाली, चम्चागिरी
और उपनिवेश ।
हमने जितने शहीद बनायें, क्या
उनकी कोई गरिमा है ? कोई सम्मान है नेपाली राज्य में ? शहीद
परिवारों की जीवन की कोई सुरक्षा है ? कोई
रोजगार है ? जिस दुर्गानन्द झा के शहादत पर आज का प्रजातन्त्र खडा है, क्या
उनकी सम्मान है यहाँ पर ? मधेश आन्दोलनों में शहादत प्राप्त मधेशी शहीदों का कोई
प्रतिष्ठा है नेपाली साम्राज्य में ? किसी
सरकारी या गैर सरकारी कार्यालय या संस्थानों में है मधेशी शहीदों की तस्वीरें ? सबाल
उठता है–क्यूँ नहीं है ?
क्यूँकि नेपाली राज मधेशियों को न नेपाली नागरिक मानती है, न
नेपाली जनता । हकिकत भी यही है कि मधेशी नेपाली ही नहीं है । मधेश नेपाल में ही
नहीं है । नेपाली साम्राज्य मधेश में अपना पञ्जा फैला रखा है । नेपाली साम्राज्य
में मधेशी उसके नागरिक नहीं हो सकते । उसके दास हो सकते है । उसके गुलाम हो सकते
हैं । और हम हैं भी वही जिससे मधेशियों को हर हाल में स्वतन्त्र होना होगा ।
कोई अगर यह कहें कि वह यदि नेपाली नहीं है तो नेपाली के
गोलियों से मरने के बाद उसे या उसके परिवार को शहीदीय क्षतिपूर्ति क्यूँ मिलती है
तो यह बहुत बडी नासमझी है । बहुत सारे लोग काम के दौरान मलेशिया, दुबई, कतार, इजरायल, कोरिया
या अरब देशों में मर जाते हैं तो वहाँ की सरकार या उसके नियम में खुले कम्पनियाँ
उसकी क्षतिपूर्ति देती हैं । तो क्या मरने बालों को उन देशों के सरकार अपना शहीद
मान लेती हैं ? क्या उसकी तस्वीर लगाकर शहीदों के तरह उसकी पूजा की जाती है
? शहीद होना और क्षतिपूर्ति पाना दो बिल्कुल अलग अलग बातें
हैं । और मधेशी मोर्चा के नेता लोग बस पार्टी नामक म्यान पावर के कार्यालय खोलकर
नेपाली साम्राज्य में मधेशियों को कामदार बनाते हैं । उनके बहुत सारे एजेण्ट्स हैं
जो खोज खोजकर मधेशियों को काम के नामपर मजदुरी करबाने, गुलामी
करबाने, दास बनाने के काम कर रहे हैं । काम के दौरान कभी राजनीतिक
म्यान पावर और एजेण्ट्स के फायदे के लिए तो कभी जब गुलाम मजदुर अपने हक अधिकारों
के लिए नेपाली राज के कम्पनियों के सामने खडे होते हैं तो उन्हें गोली मार दी जाती
है । उनके मरने के बाद वे म्यान पावर और एजेण्ट्स ठीक उसी तरह नेपाली कम्पनियों से
अनुरोध करते हैं कि मरने बालों का लाश दो और उनके परिवारों को क्षतिपूर्ति भी दो ।
यह एक व्यापार है । व्यापारी सिर्फ पैसे और अवसर को पहचानता
है । उसका प्रतिष्ठा ही उसके पद और पैसे हैं । व्यापारी हमेशा हिसाब किताब के साथ
जीता है । Ncell मोबाइल बाला हमेशा कोई न कोई योजना लाता है । रिचार्ज करने पर कभी कभी वो डब्बल बोनस तक देता
है । और उपभोक्ता उस बोनस के लोभ में न जाने कितने उसके रिचार्ज कार्ड खरीद लेते
हैं । विचार करने योग्य बात है कि Ncell अगर
डब्बल बोनस देती है तो उसे घाटों से ज्यादा फायदे कैसे होते हैं ? खर्बों
की कमाई कहाँ से होती है ? उसी प्रकार मोर्चा के नेता भी विज्ञापन कर देते हैं कि उनके
दुकान बाले आन्दोलन में मरने बालों को पचास लाख रुपये मिलने चाहिए । फिर उन्हें तो
देना है नहीं ! देने बाले दें या न दें, वो
नेपाली कम्पनी जानें । मगर उनके म्यान पावर का चर्चा होगा, उनके
एजेण्ट्सों द्वारा ज्यादा से ज्यादा मधेशी लोग नेपाली गुलामी करने को उनके
कम्पनियों में भर्ना होंगे । वहाँ सोने, जगने, नहाने
और घुमफिर करने के लिए कम्पनियों से मधेशियों की भिडन्त होंगी, लोग
मरेंगे और उनकी कमिशन बनेगी ।
शहीदों के शव यात्रा में भी नेता मुस्कुराते हैं । क्या
कारण है ? उसका भितरी रहस्य ही यही है कि वर्षों से ठण्डा पडा उनके
म्यान पावर नामक दुकानों पर ग्राहकों की भीड लगेगी । उन कम्पनियों में भी अब
प्रतिस्पर्धा होना तय है । कोई कहेगा कि क्षतिपूर्ति उसने दिलवाया तो कोई कहेगा
उसने यह करबाया, वह करबाया ता कि उनके व्यापार का तकाजा बढे और पद पैसों के
अवसरों में इजाफा हों ।
शहीद बनने के लिए भी अपना
राष्ट्र चाहिए । दूसरों के साम्राज्य या शासन में मरने बालों को शहीद नहीं कहा जा
सकता । कंचनपुर के पूनर्वासनगर (जो शब्द से ही स्पष्ट होता है कि वहाँ के लोग
बाहरी हैं) के गोविन्द गौतम की भारतीय SSB के गोली से (नेपाली दावा
अनुसार) मृत्यु होने के तुरन्त बाद राष्ट्रिय सम्मान के साथ शहीद बन जाता है, तोपों की सलामी पाता है ।
मगर मस्तिष्क, छाती और पेट की इन्द्रियों को छिया छिया कर हत्या का शिकार
मधेशियों को नेपाली राज शहीदतक घोषणा करने में नफरत करती है । क्यूँकि गोविन्द
गौतम लोग भले ही बर्मा से, भूटान से, सिक्किम से, दार्जिलिङ्ग से, मेघालय से, काश्मिर से, मिजोरम से, कान्यकुञ्ज से, बनारस से या फिर इरान से
ही क्यूँ न आए हों, वे नेपाली हैं । नेपाल
उनका राष्ट्र है । मगर मधेशियों का राष्ट्र नेपाल नहीं, मधेश है । इसिलिए शहादतों
की स्वीकार्यता के लिए भी मधेशियों का अपना राष्ट्र होना आवश्यक है, नेताओं की मुस्कान नहीं ।