Thursday, April 27, 2017

अकेले मर जाऊँगा, पर मधेशियों को गलत राह कभी नहीं दिखाउँगा - डा. सी. के. राउत

स्वराजी खुद मरते हैं, इन गद्दार नेता जैसे कुर्सी के लिए कार्यकर्ता और जनता को मरवाते नहीं
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अभी आन्दोलन की गंगा बह रही है, और उस गंगा में नहाने के लिए सभी भ्रष्ट से लेकर गद्दार तक मधेश उतर आए हैं। ५४ शहिदों की बलिदानी को कौडी भाउ में बेचकर पहाडी बन जाने वाले मसिहा से लेकर १६ बूँदे साइन करनेवाले तक, सभी। और आम मधेशी जनता को उकसा-उकसाकर सडक पर मरवा रहे हैं ताकि इनका राजनैतिक राशन कार्ड फिर से कुछ वर्ष के लिए रिन्यू हो जाए और पुन: काठमांडू लौटने पर इन्हें कुर्सी और दानापानी मिल जाए। और हमें और हमारी कार्यकर्ताओं को भी उकसा रहे हैं, कभी मजाक बनाकर, तो कभी गाली देकर तो कभी धम्की देकर। हम स्वराजियों ने यह बात शुरु से ही प्रष्ट कर दिया है कि निर्दोष मधेशियों को मरवाकर हमें नेता नहीं बनना है जैसा कि चंद कुर्सी पाने के लिए ५४ शहिदों की कुर्बानी पर रातोंरात नेता बने और बाद में उन शहिदों को बेच डाले। हम मधेश और मधेशी जनता का जीवन चाहते हैं, मरण नहीं; उनका उत्थान चाहते हैं, पतन नहीं। और इसलिए भले हम अकेले मर जाएँगे, पर मधेशियों को कभी गलत राह नहीं दिखाएँगे। जिस तरह अपनी चंद कुर्सी के लिए दर्जनों निर्दोष मधेशियों को मधेशी नेता मरवाते रहे हैं, नहीं चाहिए हमें वह, नहीं बनना है उस तरह से हमें नेता। अगर उस तरह से नेता बनना होता तो हम कब के बन चुके होते, पूछ लेना जिसने २०७१ साल माघ ५ गते लहान को देखा होगा। पर हम स्वराजियों ने संयमता अपना कर, मधेशियों के जीवन को बचाकर, अपने राह पर चलते रहे और आगे भी चलते रहेंगे। इस गद्दार मधेशी नेता और अवसरवादियों का मधेशियों को मरवानेवाला यह खेल, जिसे आन्दोलन का आवरण दिया जा रहा है, कुर्सी पाने के अलावा उसका एजेन्डा क्या है ?
एजेन्डा क्या है ?
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इस नरसंहार, जिसे आप आन्दोलन कहते है, उसका एजेन्डा क्या है ? पश्चिम में जाकर मधेशी नेता कहते हैं चितवन से कंचनपुर तक थरुहट प्रदेश होगा, बीच में आने पर 'एक मधेश एक स्वायत्त प्रदेश' के बैनर लगाते है, और पूरब जाने पर ३ प्रदेश का बैनर। क्या मांग है आखिर ?
कभी कहते है जान चले जाएँ पर मधेश में पहाड नहीं मिलाने देंगे और कहीं जाकर कहते हैं पहाड चाहिए!
दो हप्ते पहले कहते थे सीमाकंन संविधान सभा से ही कराने के लिए आन्दोलन करना है, अब जब सीमांकन संविधान सभा से किया, तो कहते हो सीमांकन के लिए आयोग बनना चाहिए!
और जब दूताबास से एक फोन चला आएगा, तो कहेगा 'भाँड में जाए मधेशी जनता' । मधेश को बीच राह में फेंककर, घायल मधेशियों को बीच में तडपता हुआ छोडकर दौडते हुए ये मधेशी नेता काठमांडू चले जाएंगे वार्ता करने। तो क्या है गन्तव्य इस आन्दोलन का ?
किस आधार पर विश्वास ?
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जिन नेताओं ने मधेशियों के साथ दर्जनों बार छल किया, धोखा दिया, ५४ मधेशियों को बेचकर 'मधेशी' शब्द ही मिटा दिया, पहाडी दुश्मन से ही मिल गए, संविधान सभा में पहाड में अपने सांसद उठाकर नेपाली राष्ट्रवादी बनने चले, ऐसे नेताओं पर किस आधार पर मधेशी जनता फिर से विश्वास करे ? क्या अब धोखा नहीं होगा ? जो नेता पीछले ६ बार धोखा दें, वो ७वें बार धोका नहीं देगा ? धोखा देने का मनशाय तो उनका अभी से ही पता चलता है कि वह एजेन्डा तक खुलकर नहीं बताता, पहाडी पार्टी में समाहित होकर राष्ट्रवादी बनने चले गए? तो उन्हें मधेश आने की जरूरत क्या ? वे पहाड जाकर आन्दोलन करें।
आन्दोलन की मोडालिटी हिंसा क्यों ?
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अगर मधेशी नेताओं में इतना नैतिक बल है तो खूद आमरण अनशन पर बैठे और खुद साइन किया हुआ अपना सम्झौता पूरा करवाए। मधेशियों ने तो उस समझौता के लिए ५४ से अधिक बलिदानी पहले ही दे दी, अब उसी समझौता के लिए फिर क्यों बलिदानी दे? उस समझौता पर साइन करने वाले, मांग पूरा हो गया कहके मधेशियों को दिग्भ्रमित करने वाले मधेशी नेता तो आप ही थे, तो अब आप वह मांग पूरा करवाइए, अपनी जान दिजिए, आमरण अनशण किजिए। पर यहाँ तो आप रहेंगे AC होटल में, प्रहरी के सुरक्षा लेकर, और मधेशियों को मरवाएंगे सडकपर। यह कहाँ न्यायोचित्त है ? मधेशियों को ५० लाख का लालच दिखाकर मरने के लिए बोलते हैं, खुद अपने बेटा-बेटी को सडक पर क्यों मरने के लिए नहीं बुलवाते ? अपने बेटाबेटी को अमेरिका और अष्ट्रेलिया में राजकुमार की तरह रखवाएंगे मधेशी शहिदों को बेचे हुए पैसों से, और गरीब मधेशियों को लालच दिखाकर मरवाएंगे सडक पर !
कितनी बलिदानी और ? कितने धोखा और ?
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संघीयता और स्वायत्तता के लिए ६५ वर्षों से मधेशी आन्दोलन पर आन्दोलन कर रहे हैं, बलिदानी दे रहे हैं, सैकडों शहीद हो गए, क्या मिला ? सिर्फ धोका। और इंतजार करते-करते हम सब कुछ गँवा बैठे। वोटर लिस्ट से नाम हट गया, नागरिकता छीन गई, जमीन छीन गई, जंगल कट गया, मधेशी विस्थापित हो गया, फिरंगी आ गया और ३३% से ज्यादा हो गया, APF चौकठ-चौकठ पर आकर खडे हो गए। अब और कितना इंतजार करें ? उसी सडेगले मांग के लिए और कितनी बलिदानी दे? मधेश तो अब आखिरी सांस गिन रहा है, अगले १० वर्ष और ऐसे ही उलझे रहें, तो मधेश का अस्तित्व ही कहां बांकी रहेगा? तो स्वतन्त्र मधेश में लगने के बजाय ये नेता लोग कब तक मधेशियों को गुमराह करते रहेंगे अपने स्वार्थ और चंद कुर्सी के खातिर ?
क्या मिल जाएगा ?
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इस तरह मधेशियों को अभी सडक पर मरवाने से क्या मिल जाएगा ? यह आन्दोलन क्या कर सकता है, संघीयता क्या कर सकती है ? (१) मधेश में पहाडी आप्रवासन रूकवा सकती है ? (२) फिरंगी पहाडी सेना और पुलिस को वापस करवा सकती है? (३) नागरिकता, सुरक्षा और विदेश नीति मधेशियों के हाथों में सौंप सकती है? (४) मधेश की नौकरियां मधेशबासी को ही मिलने की गैरेन्टी कर सकती है? (५) मधेश के साधन-स्रोत, भन्सार, वैदेशिक अनुदान पर मधेश का ही पूर्ण अधिकार कायम कर सकती है ? जब इतने आधारभूत चीज भी नहीं करवा सकता, तो पिछले ६५ वर्षों से तो हम बलिदानी देते रहे, अब और उसी चीज के लिए क्यों दे ? याद रहे, सिर्फ मधेश की आजादी ही यह सब कुछ कर सकता है। बांकी सब भ्रम है, कुर्सी का खेल है, और कुछ नहीं।
खामोश क्यों नहीं ?
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अगर इन मधेशी नेताओं को समर्थन नहीं देते तो खामोश क्यों नहीं रहते ? इस सवाल का जवाब यह है: मान लें, अगर आपका कोई प्रियजन, बेटा या बेटी, अपने सरदर्दका दवा लेने दुकान पर जाता है पर वहाँ बैठा दुकानदार उन्हें कोई दबा के नाम पर कोई जहर दे रहा है और आप यह सब देख रहे हैं तो क्या चुप रहिएगा ? नहीं तो मधेशियों के साथ क्या हो रहा हैं ? मधेशी या पहाडी पार्टियों के नाम पर दुकान खोलकर अब तक मधेशियों को ये मौत ही बेच रहे हैं न ?
जज्मेन्टल लोगों के लिए
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जो लोग बहुत जल्द ही जज्मेन्टल हो जाते हैं, वे कृपया इंतजार करें। यह आन्दोलन देखनेवाले सारे लोग मर ही नहीं जाएँगे, कुछ समय बाद हम सभी पुन: विचार करेंगे कि आखिर इस आन्दोलन का औचित्य क्या था, इस आन्दोलन की उपलब्धि क्या हुई, और निर्दोष मधेशी जनता किस लिए मरी, मधेशी जनता गोली खाने की उपलब्धि क्या हुई। हम सभी देखेंगे। इन नेताओं को कुर्सी के अलावा और भी कुछ पूरा होता है, हम भी देखेंगे।
जैसा कि अभी हम सभी देख चुके हैं कि २०६३-६४ साल के मधेश आन्दोलन से क्या मिला ? घर-घर में APF घूस आई, तीन-चौथाई से ज्यादा सेना और पुलिस मधेश में लगा दी; नागरिकता का अधिकार जो प्राप्त था, वह भी छीन लिया; वोटर लिस्ट से नाम हट गया; मधेशियों का कोटा पहाडी ले गया। जहाँ ३०००० से अधिका मधेशियों की सेना भर्ती होनी चाहिए थी, उसमें कितने मधेशियों की भर्ती हुई ? एक मधेश एक स्वायत्त प्रदेश किधर गया ? उसी चीज के लिए २०६४ साल में फिर से आन्दोलन क्यों करना पड़ा? उसके बाद भी उसी आधारभूत अधिकार के लिए बार-बार मधेशियों को क्यों मरना पड रहा है ? आदि
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२०६३ साल के मधेश आन्दोलन के समय में डा. सी. के. राउत (आजाद) द्वारा दिया गया सार्वजनिक वक्तव्य भी देखिए और एक बार पुनर्विचार किजिए कि उस समय भी हमने क्या गलत कहा था
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वि. सं. २०६३ माघ १७ गते बुधवार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य
मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि हाल संघर्षरत मधेशका सम्पूर्ण वीर-सपूतहरू र समस्त मधेशवासीहरू,
सबभन्दा पहिला मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि आफ्नो ज्यान पनि बलि दिन पछि नपर्ने मधेशका ती वीर-सपूतहरूलाई स्मरण गर्दै र उहाँहरूको बलिदानको कदर गर्दै हामी हार्दिक श्रद्धान्जलि अर्पण गर्न चाहन्छौं। हाम्रा वीर शहीदहरू सदाका लागि अमर रहनेछन् र सम्पूर्ण मधेश उहाँहरूको योगदानको सदैव आभारी रहनेछ। मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि निर्भय भएर मधेशका विभिन्न ठाउँमा हाल संघर्षरत स्वतन्त्रता-क्रान्तिका तमाम योद्धाहरू समक्ष हामी आफ्नो आदर र एकवद्धताको सलाम टक्र्याउन चाहन्छौं।
आज इतिहासमा पु:न एक पटक मधेश र मधेशीहरूलाई नेपालका शासकवर्गले आफ्नो सुनियोजित षड्यन्त्रमा फसाउँने प्रयास गरेका छन्। देखावटी केही बुँदे सम्झौताका नाममा र त्यसलाई नाटकीय ढंगले के-के न दिए जस्तो प्रस्तुत गरी मधेशीहरूको आवाजलाई दबाउने षड्यन्त्र गरिएको छ। यथार्थमा यो एउटा सम्झौता नभएर मधेशीहरूले एकजुट भई उठाइरहेको आवाजलाई दबाउने एउटा कुचाल मात्र हो। गोली बर्साउँदा‍-बर्साउँदा मधेशीहरूको आवाज दबाउन नसकी थाकिसकेका सरकार र यसका गठबन्धनहरूद्वारा गरिएको यो सम्झौता बोली फ्याँक्ने एक अर्को अदृष्य शस्त्र मात्र हो। आज हामी सबै मधेशीहरू सावधान भई यस षडयन्त्रबाट बच्नु आवश्यक छ। आज हामी सबैले यस बारेमा सोच्नु जरूरी छ, आखिर यस सम्झौताले आम-मधेशीलाई के दिएको छ? मधेशीहरूको कुन समस्यालाई समाधान गरेको छ त? यसले मधेशका केही नेताहरूको समस्या समाधान गर्न सक्ला, तर आम-मधेशीहरूले के पाएको छ त? के परिवर्तन आएको छ त आम-मधेशीका लागि? सांसद्‌मा लड्न नपाएका केही नेताहरू थप केही ठाउँबाट लड्न पाउनेछन्, बढीमा थप केही नेताहरूलाई संसद्‌को आरामदायी सीटमा बसेर निदाउँने अवसर प्राप्त होला, तर त्यसले मधेशीको जीवनमा के परिवर्तन ल्याउने छ त? के अहिले संसद्‌मा मधेशी सांसद्‌हरू छैनन्? अनि किन मधेशीहरूमाथि सरकारले अन्धाधून गोली चलाउँदा तिनीहरूले रोक्न सकेनन् त? किन मधेशीहरूमाथि पहाडीहरू, सरकारका सशस्त्र-प्रहरीहरू र माओवादी जवानहरूले आक्रमण गरी लुटपाट गर्दा तिनीहरूले केही गर्न सकेनन् त?
केही मधेशी नेताहरू अब नयाँ पार्टी नै खोल्न पाइने भइयो, वा सांसद् बनेर भोट बटुल्न पाइने भइयो, वा थप केही सांसद्हरू उठाउन पाइने भयो भनेर सम्झौताबाट तत्काल अहिले खुशी पनि हुन सक्ला, श्रेय बटुल्न हतारिएका तिनीहरू आफ्नो विजय जुलुस पनि निकाल्न सक्ला, तर तिनीहरूको सांसद् बन्ने सपना पनि पूरा हुने भन्ने कुरा संदेहनीय नै छ। यस सम्झौतामा यस्ता शर्तहरू जोडिएका छन् कि सरकार र यसका गठबन्धनहरूले आफ्नो संविधान-सभा चुनावको काम निकाल्न खोजेको प्रष्टै देख्न सकिन्छ, र एक-पटक आफ्नो काम पुरा भएपछि यी सम्झौताहरूलाई पनि धोती लाउन के बेर?
र, कसै-कसैले त मधेशीलाई प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बनाइदिनाले मधेशीहरूको समस्या समाधान हुने जस्ता हास्यास्पद कुराहरू पनि प्रस्तावित गर्छन्। त्यसले पनि कुनै एक मधेशी नेताको सपना पूरा होला, तर आम-मधेशीहरूको जीवनमा त्यसले कुनै परिवर्तन ल्याउने छैन। डिजेल र पेट्रोलको भाउमा एक रूपैयाँ बढाउँदा त व्यापक विरोध र दंगा हूने देशमा मधेशी प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपतिले मधेशीको लागि के निर्णय गर्न सक्ला त? सिटौला वा प्रचण्डलाई कारबाही गर्न सक्ला? मधेशी मन्त्रीहरूलाई एउटा प्यूनले समेत नटेर्ने र गाली दिने ठाउँमा, मधेशीको लगभग शून्य समावेशी रहेको नेपाल सैनिकले मधेशी प्रधानमन्त्रीलाई टेर्ला त? कुन चाहिं निर्णय लिन सक्ला त मधेशी प्रधानमन्त्रीले? याद रहोस् यसभन्दा अगाडि एउटा मधेशी उपप्रधानमन्त्रीले “गिरिजालाई कारबाही गर्ने” भन्दा गिरिजा प्रसाद कोइरालाले उक्त मधेशीलाई “आफ्नो हैसियत भित्र बसेर कुरा गर्ने” चेतावनी दिएका थिए, र यही मानसिकता शासक वर्गका प्यूनदेखि प्रधानमन्त्रीसम्म सबैमा लागू हुन्छ र यो कुरा तपाईंहरूले एउटा मधेशी अधिकारीका रूपमा दैनिक आफ्नै कार्यालयमा पनि अनुभव गर्न सक्नुहुन्छ। त्यही भएर कसैले एउटा मधेशीको प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बन्नाले मधेशीको समस्याको निवारण हूने दिवा-स्वप्न देख्दछ भने, उहाँहरूलाई त्यस स्वप्नबाट शीध्र नै ब्यूँझी मधेशी-सैनिक सहितको स्वतन्त्र मधेश बनाउने तर्फ अग्रसर हुनका लागि हामी सचेत गराउँदछौं।
र, मानौं सरकारले अहिले भने झैं संघीय-राज्य प्रणाली र निवार्चन क्षेत्रको पुनर्निधारणका कुराहरू लागू गरे तापनि यसले हामीद्वारा पूर्व उठाइएका मधेश र मधेशीहरूको कुन मूलभूत समस्याहरूको समाधान गर्दछ त? के यसले सम्पूर्ण मधेशलाई अखण्ड राखी एउटै राज्य हुने ग्यारेन्टी गर्दछ? के यसले मधेशीहरूको जमीन पुन: नखोसिने र पहाडीहरूलाई मधेशमा नबसाइने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? स्मरण रहोस्, बाबुराम भट्टराई अहिले नै मधेशको जग्गा हदबन्दी गरेर पहाडीहरूलाई दिने योजना बनाइसकेको छ, विभिन्न अन्तर्वार्ताहरूमा हेर्नुस्। के यसले मधेशका सम्पूर्ण प्रशासकहरू मधेशी नै हुने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? होइन भने, पछि पनि ती पहाडी अधिकारीहरूद्वारा यस्तै नै कर्फ्यू लगाई मधेशीमाथि आक्रमण गरिराखिनेछ, पहाडी शासकहरूद्वारा यसरी नै शोसन जारी नै रहनेछ। के यसले ऋतिक रोशन कांड र नेपालगंज घटना जस्ता सुनियोजित क्रियाकलापहरू गराई मधेशीहरूमाथि फेरि पनि लुटपाट र आक्रमण नहुने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशका काम-काज र जागिरका पदहरू मधेशीहरूलाई नै मिल्ने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशको सम्पूर्ण आय र दाता राष्ट्रहरूबाट प्राप्त अनुदानहरूको समुचित भाग मधेशमा लगानी हूने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? कि मधेशलाई खाली विश्वबैंक र ADB को ऋण मात्रै बोकाइने छ? के यसले देशभित्र र बाहिर रहेको मधेशीको पहिचानको समस्यालाई समाधान गर्छ? के यसले मधेशबाट पहाडी सैनिक अड्डाहरू हटाएर पूर्ण मधेशी सैनिक बनाउने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? होइन भने जतिबेला पनि ती सैनिकहरू परिचालन गरेर केन्द्रिय सरकारले जे पनि गर्न सक्छ, जे संविधान पनि लागू गर्न सक्छ, जे नियम पनि बनाउन सक्छ। केन्द्रिय सरकारले आपत्कालीन स्थितिको घोषणा गरी मधेशीहरूको सम्पूर्ण अधिकार मिनटभरिमै निलम्बन गर्न सक्छ। के यसलाई हामीले उपलब्धि ठान्ने? यसलाई हामीले सम्पूर्ण मधेशीहरूले दिएको बलिदान र संघर्षको मूल्य ठान्ने?
आज संयुक्त राष्ट्र-संघ लगायत सारा विश्वको ध्यान नेपालतिर रहँदा त नेपाल सरकार र नेताहरूले मधेशीविरुद्ध यसरी ज्यादती गर्न सक्छन्, आफ्नै प्रशासन र पुलिसद्वारा लुटपाट गराउन सक्छन्, सशस्त्र प्रहरी परिचालन गरी मधेशीहरूको नर-संहार गर्न सक्छन् भने भोलि विश्वको ध्यान पनि नेपालतिर नरहँदा मधेशीहरूमाथि कुन हदसम्मको आक्रमण गराउने होला? कसैको जन-निर्वाचित बहुमत सरकार नरहँदाको आजको संक्रमणकालीन् स्थितिमा यिनीहरूले यसरी ज्यादती गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूको बहुमतको सरकार बन्यो भने मधेशीहरूविरूद्ध के-के निर्णय गर्ने होला? अहिले यिनीहरूले आफूलाई तानाशाहको शक्ति प्रदान गर्ने संविधान बनाई लागू गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूबाट कस्तो कानून र राज्यको अपेक्षा गर्न सकिन्छ त? त्यसमाथि १३००० मान्छेहरूको निर्मम हत्या गरेका हिजोसम्मका माओबादी आतंककारीहरू सबै अब नेपाली सेना हुने कुरा छ, यी हत्यारा सत्ताधारी र सैनिकहरूमाथि कुन आधारमाथि विश्वास गर्न सकिन्छ? अहिलेको स्थितिमा त प्रचण्ड, बाबुराम र अन्यनेताहरूले शान्तिप्रिय मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिँदै कुनै पनि वार्ता गर्नबाट साफ अस्वीकार गरी मधेशीविरूद्ध सैनिक परिचालन गर्ने कुरा सोच्छन् भने भोलि यिनीहरू सत्तामा भएको बेला के मात्र गर्न छोड्ला र?
त्यसैले, हामी सबै मधेशीहरू अहिलेका सत्ताधारी नेताहरूले आफ्नो काम निकाल्न गरेको यस घोर षड्यन्त्रबाट बची मधेशलाई स्वतन्त्र घोषित नगरेसम्म आफ्नो संघर्षलाई जारी राख्ने प्रतिबद्धताका साथ अगाडि बढौं। यसका लागि मधेशका सम्पूर्ण जनताहरू, पार्टीहरू, नेताहरू, कार्यकर्ताहरू र संघ-संस्थाहरू सबै एक जुट भई लागौं। हाम्रा पूर्वजहरू दासताविरुद्ध लडेनन्, दासतालाई स्वीकार गरे, जसको सजाइ हामीहरूले भोग्यौं र भोग्दैछौं; एउटा दास भएर, दोश्रो-दर्जाको नागरिक भएर आफ्नै भूमिमा लाखौं अपमान र हेपाइसहितको गरिमारहित जिन्दगी विताइरह्यौं। तर के हामी आफ्ना भावी सन्ततिलाई, आफ्ना बच्चाहरूलाई पनि त्यही घृणामय जिन्दगी दिन चाहौंला? आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई पनि त्यही पहाडी शासकवर्गका हातमा दिई तिनीहरूलाई अनेकौं ठक्कर खानका लागि छोड्न चाहौंला? आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई त्यही भेदभावपूर्ण अन्धकारमा धकेल्न चाहौंला? होइन भने, आज हामी सबै एकजुट भएर मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा नगरेसम्म आफ्नो आन्दोलन जारी राखौं।
हाम्रो सहपाठी मित्रले पहिला पनि भने झैं कसले कहाँ के वार्ता गर्यो र कुन नेताले के पायो भन्ने कुरातिर नलागी अब हामी आफैंलाई सोधौं, ‘के हामी स्वतन्त्र भइसक्यौं? के मधेश स्वतन्त्र भइसक्यो?’। र, यसको जवाफ ‘अँ’ भनेर सकारात्मक नआएसम्म हामी संघर्ष गर्दै जाऔं, आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि लड्‌दै जाऔं। मधेशलाई २३८ वर्षको दासताबाट उन्मुक्त हुन अब कसैले रोक्न सक्ने छैन, मधेश र मधेशीहरूलाई स्वतन्त्र हुनबाट अब कसैले रोक्न सक्ने छैन।
जय मधेश!
आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवं स्वतन्त्रता गठबन्धन
वि. सं. २०६३ फाल्गुण ७ गते सोमबार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य
वार्ताका लागि उपयुक्त वातावरण बनाउन भनी रोकिएको मधेश आन्दोलनपछाडि बितेका यी दश दिनहरूमा नेपाल सरकार र यसका गठबन्धनहरूले देखाएको असंवेदनशीलता र लापरबाहीले सरकार र यसका गठबन्धनहरू मधेशीको कुनै पनि माँग प्रति गम्भीर नरहेको कुरा पु:न एकपटक पुष्टि गरेको छ। प्रधानमन्त्रीद्वारा जारी गरिएका सम्बोधनहरू र देखावटी संविधान संशोधन मधेशीहरूलाई अल्झाइराख्ने र मधेशीहरूको आवाज दबाउने एउटा षड्यन्त्र बाहेक केही नभएको कुरा यसले छर्लङ्ग पार्दछ। मधेशका वीर शहीदका रगतका टाटाहरू सडकमा सुक्न नपाउँदा-नपाउँदै, लाखौं-लाख मधेशीहरूद्वारा मधेशका गाउँ-गाँउ र शहरहरूमा गुञ्जाइएका ती आवाजका प्रतिध्वनिहरू साम्य हुन नपाउँदै मधेशीहरूको आन्दोलन र न्यायपूर्ण माँगहरू सरकार, यसका संयन्त्रहरू र संचार माध्यमहरूबाट ओझेल हुन पुगेका छन्। मधेशी आन्दोलनलाई रोक्न बन्दुकको भरमा गोली बर्साएर तीस जनाभन्दा बढीको ज्यान लिने र सयौं मधेशीहरूलाई गोलीले घायल बनाएका नर-संहारक हत्याराहरूलाई सरकारले अविलम्ब कडा-कारबाही गर्नु पर्नेमा सरकार र यसका गठबन्धनहरू हालसम्म उत्तरदायित्व लिन समेतबाट पन्छिँदै आई यस बारेमा कुरा गर्न पनि पन्छिँदै आएको छ। मधेशमा आन्दोलनरत समूहहरूसँग वार्ताका लागि हालसम्म पनि कुनै पनि पहल नगर्नुले सरकारको वार्ता प्रस्ताव अन्तर्राष्ट्रिय जगत र अन्य मानवअधिकारवादीma संस्थाहरूको आँखामा धूलो छर्ने र मधेशीहरूको आन्दोलन दबाउने कुचाल मात्र रहेको भन्ने कुरा अझ प्रष्ट पार्दछ।
शासन-संयन्त्र निर्माणारत यस घडीमा यदि मधेशीहरूले तीन-हप्तासम्म अबिरल आफ्नो ज्यानसम्मको परवाह नगरी एक जुट भई उठाएका माँगहरू प्रति सरकार र यसका गठबन्धनहरू संवेदनशील हुन सक्दैनन्, र उल्टो आफ्ना सशस्त्र-प्रहरी र सैनिकहरू परिचालन गरी मधेशीका माँगहरूलाई शासकवर्गले आफ्नो पैताला मुनि सदाका लागि कुल्चन चाहन्छन् भने त्यस देश, सरकार र संयन्त्रसँग मधेशीहरूले फेरि‍-फेरि भिखारी बनेर आफ्नो हात फैलाउनु र सरकारका सैनिकहरूको गोली खाइराख्नुको के औचित्य छ र?
कसैको पनि बहुमतको सरकार नभएको र माओवादीहरू पूर्णसत्तामा नभएको बेला आजको यस घडीमा जब सरकारले सैनिक परिचालन गरी मधेशीहरूको आवाजलाई सदाका लागि दबाइदिन चाहन्छन् भने, भोलि पनि मधेशीहरू यसै संयन्त्रभित्र रहेमा दास बन्नु बाहेक अरु के विकल्प हुन आउँछ र? आज प्रचण्ड सत्तामा नभएको बेला आफ्नो जनसेना लगाएर मधेशीको नरसंहार गराउन चाहन्छ भने भोलि ऊ राष्ट्रप्रमुख भएको बेला, उसले मधेशीहरूको नर-संहार गर्ने सरकारी लाइसेन्स प्राप्त गरेको बेला, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी अत्याधुनिक हतियारले सुसज्जित रहेको वेला मधेशीहरूसँग मर्नु वा दास बन्नु बाहेक अरु के नै विकल्प बाँकी रहन्छ र? र यो कुनै अनुमान वा अड्कल होइन, यथार्थ हो; सम्पूर्ण मधेशीहरू एक जुट भई आफ्नो जायज माँग राख्दा प्रचण्डले मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिदैं सैनिक र जनसेना परिचालन गर्ने भनेकै हो, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी सेना हुने नै भएको छ, ढिलो-चाँडो माओवादीहरू सत्ता पनि कब्जा गर्ने नै छन्, र मधेशीहरूको जमीन खोस्ने र पहाडीहरूलाई मधेशमा सर्वेसर्वा बनाउने जस्ता नीतिहरू पनि उसले सार्वजनिक गर्दै नै आएको छ। यदि आजको तुलनात्मक-सहज परिस्थितिमा यदि मधेशीहरूले आफ्ना जायज माँग राख्दा सयौं गोली खानुपर्छ, आफ्नै घरमा पनि सशस्त्र प्रहरी र पहाडीहरूद्वारा आक्रमण खप्नु परेको छ, आफ्नै घर-जमीन छोडेर हजारौं मधेशीहरू अहिले नै शरणार्थी बन्न बाध्य हुनु परेको छ भने माओवादी वा अन्य पहाडी शासकहरूको सशक्त सत्ता भएको बेलामा मधेशीहरूको जमीन हड्पेर उनीहरूलाई शरणार्थी बनाउन बाध्य गराइयो भने मधेशीहरूले कसरी आफूलाई प्रतिरक्षा गर्न सक्ला त?
र, कसैले नयाँ राजनैतिक परिवेशमा चुनावद्वारा मधेशीको भाग्य फेर्ने स्वप्न देख्छ भने, उहाँहरूलाई पनि चाँडै नै उक्त दिवा-स्वप्नबाट ब्यूँझन आग्रह गर्दछु। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा मधेशलाई कैयौं टुक्रामा विभाजित गरिने कुरा लगभग सुनिश्चित छ। सत्ताका गोली खाएर दर्जनौं मधेशीहरू मरिरहेका बेलामा त एकत्र हुन नसकेका मधेशका पार्टीहरू र नेताहरू राज्यसत्ताको अंशवंडाका वेलामा एक हुने कुरा सोच्नु व्यर्थ छ। यसरी नयाँ राजनैतिक परिवेशमा भौगोलिक र राजनैतिक रुपमा पनि छिन्न-भिन्न मधेशीहरू अहिलेको भन्दा पनि अप्रभावकारी स्थितिमा पुग्ने कुरा प्रष्ट देख्न सकिन्छ, र अहिलेको जस्तै पहाडी शासकहरूको चाकडी गरी आफ्नो लागि एक-दुईवटा मन्त्रीको कुर्सी हत्याउने बाहेक मधेशका नेताहरूले मधेशीका लागि केही गर्न सक्ने कुरामा आशावादी हुनु व्यर्थ छ। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा प्रवेश गरेको २-३ वर्ष भित्रमा नै मधेशीहरूले नयाँ राज्य-संयन्त्र उनीहरूको कुनै पनि समस्या समाधान गर्न र उनीहरूको लागि कुनै पनि आमूल परिवर्तन ल्याउन कति असक्षम छ भने कुरा अनुभव गर्न सक्नेछन् र राज्य-संयन्त्रबाट शीध्र नै आजित हुनेछन्, र त्यतिबेला कुर्सीका लागी हतारिएका यी मधेशी नेताहरू र पार्टीहरूले मधेशीहरूको तिरस्कार भोग्नु बाहेक के नै बाँकी रहला र? त्यसैले मधेशका विभिन्न पार्टीहरू र नेताहरूलाई मधेशीहरूको आन्दोलनलाई सीट र कुर्सी हत्याउने साधनको रुपमा प्रयोग नगरी सबै मधेशीले आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रता पाउने सही दिशातिर नेतृत्व दिनका लागि प्रयत्न गर्न पनि अनुरोध गर्दछौं। मधेशीहरूले कुनै विजय पाएको छैन, केही थप सीटहरूमा आफ्नो उम्मेदबार उठाउन पाइयो भन्दैमा त्यसलाई झुठो रुपमा मधेशीको विजय भनेर चित्रित गरी आम मधेशीलाई भ्रममा पार्नु र मधेशीको बलिदान र संघर्षसँग खेलबाड़ गर्नु आफैंलाई आत्मघाती सावित हुन सक्छ। मधेशीहरूको विजय उनीहरूले पहाडी शासकबाट सधैंका लागि मुक्ति पाएपछि, आफ्नो दुई सय वर्षको दासताबाट मुक्ति पाएपछि, र मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा गरेपछि मात्र हुनेछ।
दुई सय वर्षदेखि पहाडी शासकहरूले आफ्नो शैक्षिक-प्रणाली, संचार माध्यम र अन्य संयन्त्रहरूद्वारा मधेशीहरूको ब्रेन-वास गरी कतिपय मधेशीहरूलाई आफ्नो पहिचान समेत बिर्सन बाध्य गराएका छन्, कुनै आधार वा तर्क विना नै अखण्डताको नारा दिएर त्यसको आडमा मधेशलाई सघैं शोसन गरिराख्न चाहन्छन्। सम्झिनु पर्ने कुरा के हो भने मधेश केवल दुई सय वर्षअगाडि नेपालसँग गाँसिएको हो, र मधेशीहरू यसरी दास बनेर नेपालसँग सँधै गाँसिरहने न कुनै दायित्व छ न त त्यसको कुनै औचित्य नै।
ती मधेशी जनताहरू र नेताहरू जो अझै पनि शासकवर्गद्वारा गरिएको व्रेनवाशबाट मुक्त हुन सकेका छैनन्, अझै पनि मन्त्रमुग्ध सुसुप्त अवस्थामा रही होशमा आउन सकेका छैनन्, आफ्नो वास्तविक पहिचान, इतिहास र अधिकारबाट परिचित हुन सकेका छैनन्, र आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्र मधेशका लागि अगाडि आउन सकेका छैनन्, तिनीहरू पनि चाँडै नै स्वतन्त्र मधेशका लागि संघर्षमा उत्रने भन्ने कुरामा हामी विश्वास मात्र राख्दैनौं, त्यो कुरा हामी ठोकुवा नै गर्न सक्छौं। केही मधेशीहरू नयाँ राजनैतिक परिवर्तनले केही आशावादी देखिएका हुन सक्छन्, तर त्यो भ्रम अब धेरै दिनसम्म टिक्नै सक्दैन। जसरी विगतका राजनैतिक परिवर्तनहरूले मधेशीहरूको जीवनमा कुनै फरक पार्न सकेनन्, त्यसरी नै यसले पनि मधेशीहरूको कुनै पनि समस्याको समाधान गर्ने छैन, बरु यसले कैयन् मधेश-विरोधी तानाशाहहरूलाई सत्तामा मात्र पुर्‍याउनेछ र त्यसबाट आजित ती मधेशीहरू एक-न-एक दिन स्वतन्त्रता-संग्राममा उत्रन बाध्य हुने नै छन्। फरक यति हो, ती कट्टर मधेश-विरोधी तानाशाहहरू आउनुपूर्व अहिले नै सम्पूर्ण मधेशीहरू स्वतन्त्रताका लागि अगाडि बढछन् भने तुलनात्मक ढंगले शान्तिपूर्ण तरिकाले र कम क्षतिका साथ मधेशीहरूले आफ्नो अधिकार पाउन सक्छन्। त्यसैले, हामी सम्पूर्ण मधेशी जनताहरू, पार्टीहरू र नेताहरूलाई यस कुराको बोध गराउदैं मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि अहिलेको तुलनात्मक रुपले अनुकूल र उपयुक्त परिस्थितिमा नै संघर्षमा उत्रन आह्वान गर्दछौं।
मधेशको स्वतन्त्रता निर्विकल्प छ। मधेशीहरू पटक‍-पटक यी पहाडी शासकहरूको गोलीको निशाना बनेर भुटिनुभन्दा, मधेशीहरू पहाडी शासकवर्गको हरेक निर्णय पिच्छे संघर्षमा होमिनुभन्दा, एक पटक नै त्यस्तो संघर्ष गर्नु आवश्यक छ, जसले यी पहाडी शासक र उसका गोलीहरूबाट सँधैंका लागि छुटाकार दिलाओस्, जसले गर्दा मधेशीहरू आफ्नो अधिकार फेरि नखोसिने गरी सधैंका लागि पाओस्, जसले मधेशीहरूको गौरवमय इतिहास, पहिचान र संस्कृतिलाई पहाडीहरूको अतिक्रमणबाट सदाका लागि रोकोस्, जसले दुई सय वर्षदेखि बिताइरहेको दासताको जीवनबाट सदाका लागि उन्मुक्त गराओस्, र जसले पहाडी शासकहरूको हरेक षड्यन्त्रलाई सदाका लागि समाप्त पारोस्। एक मात्र र अंतिम निर्णायक संघर्ष, स्थायी स्वतन्त्रता, स्थायी शान्तिका लागि। जय मधेश!!
आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवम् स्वतन्त्रता गठबन्धन

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