कहने को तो राजनीति को समाज तथा राष्ट्रसेवा का माध्यम समझा जाता है ।
राजनीति में सक्रिय किसी भी व्यक्तिका पहला धर्म यही होता है कि वह इसके
माध्यम से आम लोगों की सेवा करें, समाज व देश के बहुमुखी विकास की राह
हमवार करें, एसी नीतियां बनाए जिससे समाज के प्रत्येक वर्ग का विकास तथा
कल्याण हो । आम जनता निर्भय होकर सुख व शान्ति से अपना गुजार सकें ।
आम लोगों की बिजली, सड़क-पानी जैसी सभी मुलभुत सुविधाएं मिल सकें । रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरतें सभी को हासिल हो सकें ।
पुरे विश्व में राजनीति के किसी भी नैतिक अध्याय मे इस बात का कही कोई ज़िक्र नहीं है कि राजनीति में सक्रिय रहनेवाला कोई व्यक्ति इस पेशे के माध्यम से अकूत धन सम्पत्ति इकट्ठा करे, नेता अपनी बेरोजगारी दुर कर सके, अपनी आनेवाली नस्लों के लिए धन-सम्पत्ति का संग्रह कर सके, अपनी राजनीति को अपने परिवार में हस्तांतरित करता रहे तथा राजनीति को सेवा के बजाय लुट, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, भेदभाव, कट्टरता, जातिवाद, गुण्डागर्दी अथवा दबंगई का पर्याय समझने लग जाए ।
परन्तु हमारे
समाज में कम से कम राजनीति का चेहरा कुछ ऐसा ही बदनुमा सा होता जा रहा है ।
आम लोगों की बिजली, सड़क-पानी जैसी सभी मुलभुत सुविधाएं मिल सकें । रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरतें सभी को हासिल हो सकें ।
पुरे विश्व में राजनीति के किसी भी नैतिक अध्याय मे इस बात का कही कोई ज़िक्र नहीं है कि राजनीति में सक्रिय रहनेवाला कोई व्यक्ति इस पेशे के माध्यम से अकूत धन सम्पत्ति इकट्ठा करे, नेता अपनी बेरोजगारी दुर कर सके, अपनी आनेवाली नस्लों के लिए धन-सम्पत्ति का संग्रह कर सके, अपनी राजनीति को अपने परिवार में हस्तांतरित करता रहे तथा राजनीति को सेवा के बजाय लुट, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, भेदभाव, कट्टरता, जातिवाद, गुण्डागर्दी अथवा दबंगई का पर्याय समझने लग जाए ।
परन्तु हमारे