देश आस्था का केन्द्र
होता है । आस्था जगता है प्रेम से । पे्रम जगता है दोतर्फी आकर्षण और लगाव से । पे्रम
बढता है विश्वास से और विश्वास बढता है त्याग से । देश जबर्जस्ती नहीं बनता । वह बनता
है समानता के आधार पर । समानता किसी अदालत के कटघरा में नहीं, न्यायालय के मन्दिर में होती है ।
क्या नेपाली अदालत
में न्यायालय है ? अगर है तो समानता
है ? क्या वह नेपाल के ही संविधान
को मनाती है ? नेपाल द्वारा हस्ताक्षरित
संयुक्त राष्ट्रसंघीय अन्तरर्राष्ट्रिय मानवाधिकारों को सम्मान करती है ? है कोई दुनियाँ की अदालत या न्यायालय जो एक ही शीर्षक
पर एक ही शख्स के उपर दर्जनों मुद्दे चलाये हों ? जिस मुद्दे को विशेष से लेकर सर्वोच्च तक ने खारेज की हो,
वही मुद्दा सैकडों लोगों पर लगाए हों ? है संसार में ऐसी कोई अदालत जिसने विपक्षी वकिलों
को बोलने तक न देकर राज्य या किसी शक्ति के दवाव में राज्य द्वारा मनपर्दी आरोपित किसी
व्यक्ति को न्यायायिक मूल्य और मान्यता के विपरीत बारम्बार प्रहरी नियन्त्रण में रखने
का आदेश देता हो ? जब न्यायालय ही अन्याय
करे तो उस देश का शासन क्या नहीं कर सकता ?
ऐसा कहाँ होता है
? क्यूँ होता है ? साहित्य के विद्यार्थी होने के नाते मैंने पढा है
कि ऐसे अदालत अमेरिका में रहे जहाँ किसी काले के साथ कोई गोरा द्वारा किसी भी प्रकार
का अपराध होने के बाद सारे प्रमाण और आधारों के बावजुद गोरा अलादत गोरे के ही पक्ष
में न्याय करती थी ।Dr. Martin Luther King Jr. ने कालों के उपर गोरों द्वारा हो रहे वैसे अत्याचारों के खिलाफ
खडे होने की हिम्मत की, सरकार और न्यायालय
समेत में हो रहे रंङ्गभेदी दुव्र्यव्हारों के खिलाफ आवाजें उठायी जिसके कारण ४ अप्रिल
१९६८ को उनकी हत्या हुई । सन् १९५७ से लेकर १९६८ तक के उनके अथक प्रयास, निडर स्वाभाव और समानताभाव के आवाज ने अमेरिकी सरकार
की आँखे खोल दी और सन् १७८७ सेप्टेम्बर १७ के दिन निर्मित अमेरिकी संविधान के १५वें
संसोधन द्वारा सन् १८७० में काले लोगों को भी मतदान करने को दिए गए अधिकार –
जिसे कुछ समय बाद Jim Crow द्वारा निस्तेज की गयी थी – को वापस काले लोगों को दिलवाया गया । President
Johnson’s Civil Rights Act of 1964 ने काले अमेरिकी
लोगों के मतदानीय अधिकार के लिए एक अनोखा इतिहास कायम की जिसने उन लोगों को भी सारे
अधिकारों सहित उन्हें पूर्ण अमेरिकी नागरिक का दर्जा देते हुए मतदान करने का अधिकार
को पूनः सुनिश्चित किया और वे सन् १९६५ से मतदान कार्य में हिस्सा लेने लगे । उसके
साथ ही सदियों से गोरा द्वारा कालों पर हो रहे दासीय, अमानवीय, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक तथा कानुनी
आदि सारे विभेद खत्म किए गए । कालों के हक अधिकारों के साथ साथ गोरे जैसे ही समान जीवन
के लिए गोरी महिलाओं ने भी सरकार से अपिल कीं । इसका मुख्य नायक Dr. Martin
Luther King Jr. ही रहे । उनको मिले नोवेल शान्ति पुरस्कार की रकम भी उन्होंने
नागरिक अधिकार आन्दोलन को सहयोग के नाम पर दान कर दिया ।
आदिवासी अमेरिकी काले
लोगों को दास और गुलाम बनाये बैठे गोरे अमेरिकीयों नेMartin Luther की भाषा को समझा । उनमें समझने की हैसियत थी,
योग्यता थी, क्षमता थी और दुरदर्शिता थी । इसिलिए अमेरिका को एक देश के रुप
में बचाये रखने के लिए गोरों द्वारा कायम नश्लीय अदालत, सुरक्षा नीति, प्रशासन, न्यायालय सबों में
सुधार लाया गया । समानता कायम की गयी । रंङ्गभेद को मिटाया गया और आजका अमेरिका दुनियाँ
के सामने खडा है सर्वशक्तिशाली राष्ट्र और देश के रुप में । नहीं तो आज का अमेरिका
विगत में ही कई राष्ट्र और देशों में विभक्त हो गई होतीे ।
मधेश में जब जब अधिकार
लगायत के आन्दोलन हुए, उन्हें भारत के नजरों
से ही नेपालियों ने देखने का दुस्साहस किया । हकिकत यह है कि मधेशियों का सम्बन्ध भारत
के समान्य परिवारों से है, न कि किसी राजा महाराजा
या शासक लागों से या दिल्ली के शासन से । उनसे अगर किसी का सम्बन्ध है भी तो नेपाली
लोगों का ही है । समान्य सी बात है कि जब दिल्ली दरबार या शासकों से समान्य मधेशियों
का सम्बन्ध ही नहीं तो उन्हें भारत क्यूँ परिचालित करेगा ? लेकिन एक बात तय है कि समान्य मधेशियों का दैनिक जीवन में किसी
प्रकार का भूचाल आया तो समान्य भारतीयों की भी परेशानी बढेगी । जब उनकी परेशानी बढेगी
तो भारतीय सरकार या सत्ता चयन से रह ही नहीं सकता ।
हम संविधान संसोधन
की बात करते हैं और एमाले किसी भी हाल में उसके लिए राजी नहीं है । हम सीमांकन की बात
करते हैं, लेकिन मोर्चा के प्रधानमन्त्री
तक ने कह दिया है कि सीमांकन पर अभी कोई बात नहीं हो सकता । हम मधेशी यूवाओं के लिए
अवसर की बात करते हैं और मोर्चा–प्रचण्ड सरकार का
मुख्य सचिव ने बारम्बार बोला है कि मधेश सरकार लगायत के कोई भी प्रान्तीय सरकार अपने
प्रान्त में अपने अनुसार से कोई भ्याकेन्सी नहीं खोल सकती, न किसी को नौकरी दे सकती । जल, जंङ्गल और जमीन, नागरिकता, विदेश नीति,
अर्थ नीति, भंसार नीति और खानी तथा खनिज नीति केन्द्र के मातहत ही रहेंगी
तो फिर हम कैसे प्रान्त का सरकार चलायेंगे ?
हम आन्दोलन के बल
पर अगर पूरा संविधान ही अपने पक्ष में संसोधन करा लें, तो क्या फर्क पडेगा ? संसोधन उसी में होने की प्राकृतिक नियम और अधिकार होता है जो
अपना होता है । हम उसी घर में अपने अनुसार के मरम्मत या सुधार कर या करवा सकते हैं
जो अपना है । भाडे के घर में रहकर उसमें अपने अनुसार हम कोई परिवर्तन नहीं कर सकते
या हमारे चाहने के अनुसार घर मालिक अपने घरको तोडफोड नहीं कर सकते । और वही बात नेपाली
संविधान में भी लागू होती है । जिस संविधान को हमने बना ही नहीं पाया । जिसे बनाते
समय हमसे कोई राय तक नहीं ली गयी, वो संविधान हमारा
कैसे हो सकता है ? और जो हमारा है ही
नहीं, उसमें हम सुधार कैसे सकते
हैं ? वो नेपाली मालिक के हाथ में
है । हमें हमारा अपना संविधान बनाना होगा । संविधान किसी देश का होता है । हमें हमारे
देश का पूनर्निमाण करना होगा ।
हमने आजतक सिर्फ आन्दोलन
की है, परिवर्तन नहीं । हमने सिर्फ
शहादत दी है, शहीद नहीं बन पाये
। जो मिले थे, उसे भी गवाँ दिए ।
हम लडे मुगलों से,
गलतफहमी में पड गये । हमने अंग्रेजों को सहयोग की,
धोखा खा लिए । हमने खेतों का निर्माण किया,
मुलुकी ऐन का शिकार हो गए । पंचायत से दोस्ती की,
भूमि सुधार ने भूमि हडप ली । प्रजातान्त्रिक नेताओं
को पनाह दी, गैर नेपाली बना दिए
। माओवादियों को हथियार दी, परिवारविहीन बना दिए
। लोकतान्त्रिक आन्दोलन को किस्मत समझा, अस्तित्व मिटा दिया । गणतन्त्र को अपना भविष्य माना, संविधानविहीन बना दिया ।
मधेश ने आजतक सिर्फ
लगानी की, बदले में पाया घाटों के अलावा
कुछ नहीं । क्यूँकि संविधान उसीका होता है जो बनाता है । संविधान को वही चलाता है जिसका
सेना होता है ।
हमने देखा है बसों
में । बसों में समान्यतः तीन लोग होते हैं ः ड्राइवर, कन्डकटर और खलाँसी । बसका ड्राइवर मुखिया होता है, कन्डक्टर अर्थमन्त्री होता है और खलाँसी मजदुर होता
है । मजदुर बेचारा सारा कठीन काम करता हैं, मगर पैसों से दुर रहता है । अर्थमन्त्री जो दे दें, जो खिला दें, वही काफी है, वही उसका भाग्य होता हैै । न ड्राइवर, न कन्डक्टर, मधेशी रहेगा खलाँसी–अगर हम नहीं सुधरे तो ।
अब तो गाडियाँ भी
एडभान्स होने लगी हैं । अब तो गाडियों के मुखिया और उनके अर्थमन्त्री खलाँसी भी रखना
छोड रहे हैं । अब तो टेक्नोलोजिकल और सुविधा सम्पन्न हो रहे मालिक मजदुरों को काम भी
देने से परहेज आने लगे हैं । और नेपाली साम्राज्य में वही हाल मधेशियों का होने बाला
है । मधेशी निर्णय लें–अब क्या करना है ?
उसे नेपाली साम्राज्य चाहिए या मधेश का स्वराज्य
? उसे नेपाली संविधान चाहिए
या स्वतन्त्रता का ऐलान ? उसे नेपाली परतन्त्र
संघीयता चाहिए या मधेश का स्वतन्त्रता