Tuesday, October 9, 2018

धान निर्यात करनेवाला समृद्ध मधेश को कैसे नेपालियों ने बरबाद किया ?


मधेश की मिट्टी सोना उगलने वाली मिट्टी है। वहाँ से जो धान लगायत के खाद्यान्न उपजता है, वह पूरे नेपाल को खिलाता रहा है। उतना ही नहीं मधेश की मिट्टी पर इतनी धान उपजती थी कि पूरे नेपाल खाने के बाद भी बहुत बच जाती थी, और दूसरे देशों को धान निर्यात की जाती थी।

मधेश की ही नहीं, पूरे नेपाल की अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी मधेश की कृषि थी। इसलिए मधेश को कृषि प्रधान देश कहा जाता था (याद रहे, था)। आज से ४० वर्ष पहले (सन् १९७५ के दौरान) नेपाल के कुल ग्राहस्थ उत्पादन (GDP) में ७०% से ज्यादा कृषि का योगदान रहता था, और वह मधेश की ही कृषि थी। मधेश इतना समृद्ध था।

समृद्ध, सम्पन्न और स्वावलम्बी मधेश का होना नेपाली शासकों को देखा न गया। नेपाली शासक मधेश की कृषि व्यवस्था को खत्म करने के लिए एक पर एक षड्यन्त्र बुनने लगे। मधेशी सम्पन्न हो, ये नेपाली शासकों को स्वीकार न हुआ। इसलिए मधेश की कृषि व्यवस्था ध्वस्त करने के लिए मधेश की जमीन पहाडियों के नाम की जाने लगी। कभी भूमिसुधार के नाम पर तो कभी कुछ षडयन्त्र करके मधेशियों की सैकडौं-हजारों विघा जमीन एक-एक पहाडियों के नाम पर कर दी गई, और वह जमीन बांझ ही रहने लगी। नई सिंचाई की व्यवस्था करना तो दूर, राणा काल में भी जो सिंचाई की व्यवस्था की गई थी, उसे भी ध्वस्त होने दिया। मधेशी किसानों के प्रतिकूल उत्पादन का बजार भाउ निर्धारण करके कृषि को घाटे का काम बनाने लगा, मधेशी किसानों को ऋण में डुबोने लगा। आज भी धान या उख की रेट नेपाल सरकार इस तरह से निर्धारण करती है ताकि मधेशी किसान ऋण में डुब जाते हैं और अपना बाकी खेत भी बेचने पर मजबूर हो जाते है। इसका परिणाम ये हुआ कि धीरे-धीरे मधेश की कृषि  व्यवस्था उजड गई, ध्वस्त हो गई। ४० वर्ष के बाद ही आज कुल ग्राहस्थ उत्पादन (GDP) में केवल ३५% योगदान कृषि का रह गया है। जिस मधेश में इतनी धान उपजती थी कि वह विदेश में निर्यात किया जाता था, आज वहाँ पर विदेश से धान लाना पडता है। केवल २०७१-७२ (सन् २०१४-२०१५) साल में ही २५ अर्ब रुपया का चावल नेपाल आयात किया गया, जबकि  राणाकाल में सन् १९१३/१४ में नेपाल से १ करोड ५९ लाख ३६ हजार रुपैयाँको चामल भारत निर्यात किया गया था, जिसका मोल अभी के दर में २५ अर्ब से बहुत ज्यादा है। 

इस तरह मधेश की कृषि ध्वस्त करने से आज १९% परिवार मधेश में अति खाद्यान्न अभाव से पीडित है, जहाँ पर पहाड में केवल १२% परिवार उससे पीडित है। खाने की कमी से मधेश में ५०.२%  बच्चे  और ४२% महिलाओं में खून की कमी है। मधेशियों के शरीर ही क्षीण होता जा रहा है, भौतिक अस्तित्व ही समाप्त हो रहा है, मधेश में अपक्षय से पीडित बच्चे २०.४% है, जबकि पहाड में केवल ६.९% बच्चे अपक्षय से पीडित है। (डेटा स्रोत के लिए 'मधेश का इतिहास', पृष्ट २३-२४ देखें)

और ये सब जान बुझकर मधेशियों को गुलाम बनाने के लिए किया गया। जब तक मधेश में कृषि सुदृढ रहती, मधेशियों को नेपाल सरकार के आगे नौकरी के लिए गिडगिडाना नहीं पडता, वह खुद स्वतन्त्र रह सकता था, नेपाल सरकार से बेपरवाह रह सकता था। पर कृषि को ध्वस्त करके मधेशियों को आज गुलाम बना दिया है और मधेशियों को, कहिए तो एक हिसाब से, काम करने के लिए अब विदेश में निर्यात किया जाता है।  और आपको लगता है, विदेश में रहकर आप अपने लिए पैसा कमा रहे हैं ? जी नहीं, आपसे नेपाल सरकार किस तरह से विदेश में काम करवाकर पैसा ऐंठ रही है, यह थोडा नजर डालेंगे तो आपको पता चलेगा। आप ३ वर्ष-४ वर्ष विदेश में १०-२० लाख रुपया कमाकर लाते हैं तो क्या करते हैं ? शहर-बजार में जमीन खरीदते हैं, जो अक्सर पहाडियों के द्वारा प्लटिंग किया गया रहता है। और वह पहाडी लोग मधेशी के पुर्खा की जमीन मधेशियों को ही लाखों में बेचकर मधेश का सारा पैसा लेकर चला जाता है। उसके बाद आप बच्चों को पढाने में पैसा खर्च करते हैं ? कहाँ पढाते हैं ? काठमांडू में ? यानि आपका पैसा उस नाम पर भी पहाडियों को चला जाता है। आप घर बनाते हैं, सिमेन्ट, रड, वालू से लेकर घर तक पर  कई गुणा टैक्स लगाकर आपके सारे पैसे खींच कर नेपाल सरकार लेकर चली जाती है। और आपको लगता है कि विदेश में आपने लाखों कमाया ! अगर मधेशियों का पैसा मधेश में रहा होता तो आज दिनों दिन मधेश गरीब क्यों होता जा रहा है ? हमारे जिले को ही लिजिए: जो कभी सबसे समृद्ध जिलों में आते थे, आज मधेश के सबसे गरीब जिला कैसे बन गया ? महोत्तरी जिले कैसे कर्णाली से भी ज्यादा पिछड गया ? तो रहस्य यह है कि भीतर ही भीतर नेपाल सरकार मधेशियों को मशीन या गुलाम की तरह अपने लिए पैसा कमाने विदेश भेजते हैं । आपको मालूम होगा जब नेपाल सरकार एक पाना तक फ्री में नहीं देती है, तो विदेश जाने के लिए फ्री विजा और टिकट की व्यवस्था क्यों की ? रहस्य को समझिए। नेपाल सरकार गुलाम बनाकर मधेशीयों को एक्सपोर्ट कर रहा है।

मधेशियों को गुलामी से रोककर अब आजाद करना ही होगा। हमें अपनी सोने उगलने वाली मिट्टी की लाज बचानी ही होगी। मधेश को फिरंगियों से आजाद करके हम पुन: मधेश की मिट्टी से सोना उगा सकते हैं, कृषि व्यवस्था को वापस ला सकते हैं।

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