Thursday, March 30, 2017

हम मधेशी सदैव सत्ता परिवर्तन की आन्दोलन में शासकों का लठैत ही बनते आ रहे हैं : ई. एस.एस.मण्डळ


स्थानीय निर्वाचन मधेशी आवाज़ बन्द करने की बनी बनाई साजिस है!

संघीयता (Federalization) और विकेन्द्रिकरण (Decentralization) दो बिलकुल भिन्न राजनैतिक व्यवस्था है | शीर्षकीय विषयवस्तु पर चर्चा करने से पहले समाज व्यवस्थापन की यह दो शब्दें अर्थात संघीयता और विकेन्द्रीकरण को समझ लेना जरूरी है | आइए, पहले संक्षिप्त में इसे परिभाषित करें :
क. संघीयता (Federalization) :
संघीयता एक ही स्टेट में रहे अनेक राष्ट्रों का एकिकृत अभिव्यक्ति है | बहुजातिय, बहूभाषिक, बहूसांस्कृत, बहूराष्ट्रिय एवं भौगोलिक विविधता को एक मजबुत गठजोड़ बनाने की राजनैतिक व्यवस्था भी यह है | ईस व्यवस्था में दो प्रकार की सरकारे होती है : १. केंद्र सरकार, २. राज्य सरकार | केंद्र सरकार समग्र राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करता है वहीं पर राज्य सरकारे स्थानीय स्तर पर रहे समस्याएँ हल करती है | संघीय व्यवस्था में : -
१. विधायिका दो स्तरों की होती है | संघीय सदन पुरे देश की प्रतिनिधित्व करती है वहीं पर प्रादेशिक विधायिका/सदन अलग - अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है |
२. संघीयता में दो प्रकार की सरकार होती है लेकिन दोनों स्तर के सरकार एक ही जनता पर शासन करती है | दोनों सरकार अपनी - अपनी अलग शक्तियां प्रयोग करती है |
प्रत्येक स्तर में प्रयोग होनेवाली शक्तियाँ संविधान में साफ - साफ लिखी रहती है और इसपर आपसी दखल निषेध होती है |
३. संविधान में कोई भी परिवर्तन करने के लिए दोनों स्तरों की इच्छा और २/३ बहुमत की आवश्यकता रहती है | जन-प्रतिनिधित्व के लिए जनसंख्या प्रधान मानी जाति है |
४. प्रदेश निर्धारण का मुख्य आधार भाषा, संस्कृति, ऐतिहासिक पहचान, भौगोलिक बसोबास, मनोवैग्यानिक एकता तथा श्रोत-साधन की उपलब्धता होती है |
५. बिवाद समाधान में न्यायालय का योगदान महत्वपूर्ण रहता है | केन्द्र की बारम्बार हस्तक्षेप एवं केन्द्र द्वारा प्रादेशिक जनता पर हुए विभेद, शोषण, उत्पीड़न के कारण प्रादेशिक जनमत के आधार पर संघ से अलग होने का अधिकार भी सुरक्षित किया जाता है ताकि केन्द्र और शासक में कोई भी प्रकार की विभेदी मानसिकता पैदा न हों |
अत: संघीयता न केवल देश की एकता को बढाने में मद्दत करता है बल्कि अखण्डता को बचाता है और क्षेत्रीय अलगपना को भी शान्तिपूर्ण विधी से व्यवस्थित करता है |
ख. विकेन्द्रीकरण (Decentralization) :
१. विकेन्द्रीकरण का संक्षिप्त अर्थ केन्द्रीय राज्यसत्ता की प्रशासनिक कार्य (Administrative Function) एवं शक्ति (Central Power) को निचले स्थानीय हिस्सों में अवतरित कराना है | केन्द्रीय सरकार की शक्ति स्थानीय स्तर पर बने सरकार या निकाय में हस्तान्तरित करना ही विकेन्द्रीकरण है | शहरी जनसंख्या एवं औद्यौगिकरण को पुर्नसंरचना के जरिए ग्रामीन इलाकों में विस्तारित होने के लिए प्रेरित करने और जनता की ध्यान को केन्द्रिय शासन से खिंचकर स्थानीय शासन पर केन्द्रित करने का विधी भी विकेन्द्रीकरण है | 
स्पष्ट शब्दों में कहे तो विकेन्द्रीकरण यानि Decentralization का मतलब किसी सत्ता या अधिकार को केंद्र से हटाकर दूर दराज में ले जाना अथवा राजनीतिक क्षेत्र में रहे शक्ति या सत्ता को केवल केंद्र या किसी एक व्यक्ति में निहित न रखकर अनेक संस्थाओं या व्यक्तियों में थोड़े-थोड़े अंशों में बटवारा करना ही है |
नेपाली साम्राज्य और मधेश के संदर्भ में इसका लेखाजोखा (विश्लेषण) :
नेपाल में सत्ता परिवर्तन और अधिकार प्राप्ति दोनों के लिए आन्दोलन हुआ है और होता रहा है | राणा शासन हटाने के लिए हों या प्रजातन्त्र लाने के लिए हों यहाँ सबने आन्दोलन किया है | निरंकुश पञ्चायत हटाने के लिए हों अथवा राजातन्त्र हटाने के लिए हों बलिदानी हर जाति, बर्ग, सम्प्रदाय के लोगों नें दिया है | बडे बडे आन्दोलन हुए, परिवर्तन भी हुआ परंतु उस आन्दोलन या परिवर्तन से मधेशियों को क्या मिला, इस पर स्पष्ट विश्लेषण नहीं हो सका है | 
००७ में राणातन्त्र हटे शाहीतन्त्र को राज्यसत्ता पुन: प्राप्त हुआ | ०४६ में हुए परिवर्तन से राजतन्त्र में अन्य खस वंशी को शेयर प्राप्त हुआ | ०६२/०६३ में आन्दोलन हुआ, शाह वंशीय राजतन्त्र का जड़ हटाकर नेपाली सत्ता एवं शक्तियों पर आम खसबंशियों नें पूर्ण कब्जा जमाया | नेपाली साम्राज्य के हर आन्दोलन में सहभागी रहे मधेशी, जनजाति, आदिबासी, अल्पसंख्यक एवं सीमान्तकृत समुदायों को क्या मिला ? कुछ भी तो नहीं मिला |
आजतक जितने भी आन्दोलन हुये है सारे के सारे अधिकार प्राप्ति से अधिक सत्ता परिवर्तन की आन्दोलन रहे हैं | समान शासक वंश के अलग अलग लोगों में सत्ता हस्तान्तरण होने की आन्दोलन ही हुए हैं | कभी शाह परिवार से राणा परिवार तो कभी राणा परिवार से फिर शाह परिवार में राज्यसत्ता पहुँचा है | कभी शाही तन्त्र में चतूर खस परिवार को सेयर मिला तो कभी पुरे राजशाही खत्म होकर आम खस में सत्ता एवं शक्तियों का हस्तान्तरण हुआ है | बाँकी के सभी तो सत्ता परिवर्तन एवं हस्तान्तरण आन्दोलन के सहयोगी एवं उपयोगी ही रहे हैं |
०५२ साल में जनयुद्ध के नामपर आरंभ हुए आन्दोलन एक प्रकार से अधिकार प्राप्त करने की आन्दोलन जरूर थी | संघीयता, धर्म निर्पेक्षता, स्वशासन, पहचान, समानुपातिक सहभागिता, श्रोत-साधन का बटवारा, राज्य के हर निकायों में पुर्नसंरचना होने जैसी जन अधिकार के बिषय सामिल रखकर आन्दोलन का चरित्र वास्तव में अधिकार प्राप्ति का ही था | परंतु जिस प्रकार से उस माओवादी आन्दोलन का अन्त हुआ स्पष्ट रूपसे प्रमाणित हो गया कि वह भी केवल सत्ता परिवर्तन का आन्दोलन था और उसमे मधेशी लगायत अन्य गैर-खसों को चतुराई पूर्वक केवल उपयोग ही किया गया था | इससे स्पष्ट होता है कि आजतक जितने भी आन्दोलन हुआ है सारे सत्ता परिवर्तन का आन्दोलन ही रहे जिसने नेपाली शासन सत्ता पर खस वर्गों को पूर्ण रूपसे स्थापित कर दिया है | ०७२ में पारित हुए संविधान ने शासक बर्गको औरभी एकताबद्ध एवं मजबुत हुआ है |
हर आन्दोलन में सामिल होनेके बावजूद हमें कुछ भी नहीं मिला | सायद इसलिए ही हम आजभी आन्दोलनरत रहे हैं | संघीय लोकतन्त्र नाम के संविधान मुल्क में है परंतु हम संघीयता के लिए ही लड़ रहे हैं | संविधान में लोकतन्त्र की व्यवस्था की गई है किन्तु हम लोकतान्त्रिक अधिकार के लिए ही लड़ रहे हैं | जिस संविधानसभा में हम थे उसी सभाद्वारा ९०% से संविधान पारित है फिर भी नागरिकता, पहचान, समानुपातिक समावेशी, भाषा, संस्कृति, सम्मान एवं स्वभिमान की हमारी लड़ाई शेष है, जारी है | आज भी मधेशी बेटे, बेटियाँ, बच्चे और बृद्ध नेपाली गोलियों से अपने सर और छाति को छलनी करने पर मजबुर हैं | आखिर क्यों ?
हमारी मानिए तो हम कहेंगे कि नेपाली राज्य चरित्र को समझने में हम मधेशी सदैव नकाम होते आएं हैं | संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र के आवरण में केन्द्रिकृत एकात्मक खस शासन प्रणाली ही है परंतु थोड़ा केन्द्रिकृत शासन में विकेन्द्रीकरण की लेप लगा देने से हम संघीयता ही समझ बैठे हैं | आजभी हम वही भुल कर रहे हैं |
अपनी अधिकार प्राप्ति के बजाय आजतक हम दुसरों को सत्ता हस्तान्तरण करने की आन्दोलन में सामिल होते रहे हैं या प्रयोग होते आ रहे हैं | हमारी पहचान, मान-सम्मान, हक और अधिकार को सदैव इनकार करने वाले नेपाली/पहाड़ी उपनिवेश को हम दिलसे अपना देश मानते रहे हैं | आन्दोलन करते करते थक गए, आन्दोलन - वार्ता - सम्झौते - धोखा के चक्र में बारम्बार फंसते रहे किन्तु २-४ मंत्री, कुछ नोट और चन्द सुख पाने के लिए काँग्रेस, एमाले जैसे शासकीय पार्टियों का गुलामी करते रहे | शासक वर्गों के हित में रहे संविधान और कानून को मान्यता दिलवाने के लिए वोट देते रहे हैं | उनका ह्वीप और आदेश मानकर उनके लिए खुदको भी और आम मधेशियों को भी बेचते रहे हैं | हमें ललिपप देकर या कोई न कोई षड़यन्त्र में फंसाकर, डर धमकी दिखाकर अथवा ह्वीप लगाकर हमारी आवाज़ को बन्द करते रहे हैं और हम चूप होते रहे हैं | यही कारण रहा है कि सत्ता और सरकार में पहुँचे चन्द मधेशियों के अलावा ९८% मधेशी अस्तित्व रक्षा के स्थितियों पर आ खड़े हैं |
मधेशी मोर्चा के नामपर जो मधेशियों की आवाज़ बुलन्द हो रही है, उसे दबाने के लिए संघीयता के मर्म विपरित शासक वर्गों नें स्थानीय चूनाव को आगे बढ़ाया है | नेपाली दल में रहे मधेशियों का आवाज़ बन्द रहने के अवस्था में सड़क से जो आवाज़ आ रही थी उसे भी बन्द करने के लिए अचूक हथियार के रूपमें ही यह निर्वाचन आगे आया है | प्रदेश सभा गठन पश्चात होनेवाली निर्वाचन पहले हो रही है और उसे भी केन्द्र सरकार करा रही है | चूनाव पर हर नेपाली दल एवं नेता पूर्ण सहमत है | 
हाँ, संविधान निर्माण के क्रम में अनेक विवाद/बखेड़ा का नाटक दिखाकर संविधान पारित के वक्त जिस तरह सभी शासक एकजूट हो गया था, उसी स्टाईल में मोर्चाद्वारा मांगी गई संशोधन पर शासक वर्गद्वारा नाटक मंचन हो रहा है | मोर्चा को खस-जाल में फँसाने के लिए महा प्रपंच हो रहा है |
संविधान संशोधन पर एमाले की शख्त इनकारी सीमांकन को तत्काल कायम रखने की बार्गेनिंग है | माओवादी द्वारा संसद में पेश सीमांकन हेरफेर सहित का संशोधन विधेयक मोर्चा को संसद में ही रखे रहने का चालबाजी है | तत्काल संशोधन कर चुनाव कराने की काँग्रेसी वकालत मोर्चा को चूनाव में लेजाने का ट्याक्टिकल षड़यन्त्र के अलावा कुछ नहीं है | संशोधन तो होगा ही परंतु अन्तरिम संविधान में रहे प्रावधानों से अधिक नहीं | एक तरफ संशोधन होगा दुसरे तरफ नयां समस्या आएंगे (बबूल का पेड़, एक तरफ का टहनी काटो दुसरे तरफ निकल जाता है), और मोर्चा सदैव टहनी काटने के ही जाल में ही फंसे रहेंगे, शासक बर्ग फँसाते रहेंगे |
समग्र में आज सड़क पर आ रहे आन्दोलनकारी युवाओं को गाँव/नगर में चूनाव करा कर प्रमुख, उप-प्रमुख एवं सदस्य बनाकर उलझाने की दाव में शासक है | पदों में उलझा कर आन्दोलन करने की नैतिक धरातल को तोड़ने के लिए ही स्थानीय निकायों का चूनाव पहले कराने में लोकतान्त्रिक, गणतान्त्रिक, मार्क्सवादी, माओवादी, राजावादी सभी एकमत है | बस मोर्चा को किस तरह चूनाव में ले जा कर कार्यकर्ताओं को ठेगान लगा देना चाहती है ताकि शासक के लिए आगे की राह सहज बन सके | 
ईस साजिस को अञ्जाम देनेका महत्वपूर्ण अस्त्र स्थानीय निर्वाचन को पहले कराना ही है | शासकीय इस प्रपंच का सामना मधेशी मोर्चा कैसे करती है, आगे की दिनों में जरूर देखने को मिलेगा | ततकाल के लिए धैर्य किजिए |
जय मधेश !



Monday, March 27, 2017

स्वतन्त्र मधेश क्यों ? : डॉ. सी.के.राउत


जिज्ञासु:
कहने का मतलब, आप पूर्ण आजादी और स्वराज की बात करते हैं। आखिर स्वतन्त्र मधेश ही क्यों?
डॉ. सी. के. राउत:
पहले इसके केवल तीन मुख्य आधारभूत कारण देखें
  1. पहली बात, अगर कोई भूमि उपनिवेश है या कहीं की जनता गुलाम है, तो स्वतन्त्रता उनका प्राकृतिक समाधान और हक है। चाहे लोग कितने सुसम्पन्न ही क्यों न हो, उन्हें सब कुछ मिला ही क्यों न हो, पर अगर कोई गुलाम है, तो आजाद होना हर हाल में उसका अधिकार है।
  2. दूसरी बात, कोई दूसरा समाधान मधेश में रहे नेपाली/पहाडी सेना को पूर्ण रूप से हटाकर उसकी जगह मधेशी सेना को नहीं रख सकता, और जब तक मधेश की भूमि पर नेपाली/पहाड़ी सेना रहेगी, मधेशियों की गुलामी का अन्त नहीं हो सकता। नियम, कानून, व्यवस्था, संविधान आदि बनते रहते हैं, उनकी कोई अहमियत नहीं जब तक अपनी सेना न हो। साम्राज्य की सेना लगाकर कभी भी नियम, कानून, संविधान और व्यवस्था को निलम्बन किया जा सकता है। इसलिए जब तक मधेश में मधेशी मातहत की मधेशी सेना नहीं, तब तक नियम, कानून, व्यवस्था, संविधान आदि कुछ भी अपना नहीं।
  3. तीसरी बात, कोई दूसरा समाधान मधेशियों को स्थायी रूप से अधिकार नहीं दिला सकता, उन मार्गों द्वारा अधिकार मिल जाने पर भी नेपाली शासक जब चाहे वह अधिकार हमसे छीन लेते हैं। जैसे कि ०६३०६४ साल के मधेश आन्दोलन की उपलब्धि के रूप में तो स्वायत्त मधेश हासिल हो चुका था, मधेशियों को राज्य के हर अंग और निकाय में समानुपातिक समावेशी करने के लिए समझौता हो चुका था, पर जैसे ही हम कमजोर हुए, सारी चीजें नेपाली शासकों ने हमसे छीन ली। अरे, यहाँ तक हुआ है कि मधेशियों को दे दी गई नागरिकता भी दसों हजारों की संख्या में छीन ली गई है।
ऊपर दिए गए तीन कारण आधारभूत हैं जो साबित करते हैं कि हमें स्वतन्त्र मधेश ही चाहिए, आजादी ही चाहिए, उससे कम कुछ नहीं। उनके अलावा मधेशियों के प्रति जो विभेद और रंगभेद नेपाली राज में कायम है, मधेशियों का विस्थापन, जातीय सफाया और नस्ल संहार जो हो रहा है, मधेश में जो विकास का अभाव और गरीबी है, मधेश का जो आर्थिक दोहन किया जा रहा है, मधेश का जो नेपालीकरण करके मधेश की अपनी सारी चीजें मिटाई जा रही हैं आदि अनेकों कारण भी मौजूद हैं।
जिज्ञासु:
क्या नेपाल के संविधान में अधिकार सुनिश्चित करने से नहीं होगा?
डॉ. सी. के. राउत:
संविधान उसका होता है, जिसके पास सेना होती है। जिसकी सेना नहीं, उसका क्या संविधान? सेना लगाकर कभी भी संविधानको निलम्बन किया जा सकता है, और नेपाल में संविधान टिका है कितना?
अभी मर-मर के अधिकांश मधेशी लोग इस तरह से कर रहे हैं कि जैसे संविधान में एक बार लिखा देंगे, तो सारा काम खत्म! संविधान तो हर १०१५ वर्ष में टूटा हैं यहाँ, पूरे परिवर्तन आए हैं, तो मधेशियों के मामले में कितने दिन टिकेगा संविधान? जैसे मधेशी ठंड पडेंगे, फिर पलट लेगा संविधान। देखा नहीं, स्वायत्त मधेश तो मधेश आन्दोलन के बाद समझौता में था, सेना में भी समानुपातिक प्रतिनिधित्व, पर कहाँ गए वे? कितने मधेशी सेना में भर्ती हुए? ३००० मधेशियों की भी भर्ती नहीं हो सकी।
और क्या अभी नेपाल के संविधान में मधेशियों को दूसरे दर्जा पर रखा गया है, क्या मधेशियों को नागरिकता नहीं देने के लिए कहा गया है? नहीं, तो फिर इतने मधेशी लोग अनागरिक क्यों हैं, मधेशी क्यों अपनी ही भूमि पर दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए हैं? बताइए। खाली लिख देने से नहीं होता है न!
इस लिए ऐसे संविधान बनते रहेंगे, टूटते रहेंगे, जब तक मधेशियों के पास अपना देश, अपनी सेना और अपना संविधान नहीं होता, चाहे जितनी भी उपलब्धियाँ दिखा दें, सब मिथ्या हैं, क्षणिक हैं।
संविधान बस वृक्ष का एक फल है, जैसा वृक्ष वैसा ही फल। और यहाँ तो एक फल जो एक महीने में सड़ जाता है, उसे शासकों से पाने के लिए हम वर्षों संघर्ष करते हैं, और हाथ में आते-आते ही सड़ जाता है। हमें फल के लिए नहीं, अपना वृक्ष लगाने के लिए लगना चाहिए, जहाँ पर हरेक साल फल लगेगा। स्वराज कल्प-वृक्ष है और संविधान फल। अपना वृक्ष रहेगा तो फल तो खाते रहेंगे।
जिज्ञासु:
अगर संघीय-राज्य प्रणाली आ जाएगी तो सब कुछ ठीक नहीं हो जाएगा? तब हम अपने तरीके से राज्य चला सकते हैं।
डॉ. सी. के. राउत:
ऐसा क्या चमत्कार हो जाएगा संघीयता के आने से?
  1. क्या संघीयता सम्पूर्ण मधेश को अखण्ड रखकर एक राज्य होने की गारन्टी करती है?
  2. क्या वह मधेशियों की जमीन पुन: नहीं छीने जाने की और नेपालियों/पहाड़ियों को मधेश में नहीं बसाए जाने की गारन्टी करती है?
  3. क्या वह मधेश के प्रशासक मधेशी होने की गारन्टी करती है? नहीं तो, बाद में भी नेपाली अधिकारियों द्वारा इसी तरह से कर्फ्यू लगाकर मधेशियों पर आक्रमण होता रहेगा और नेपाली शासक द्वारा इसी तरह से शोषण जारी ही रहेगा।
  4. क्या वह ऋतिक रोशन कांड और नेपालगंज घटना जैसे सुनियोजित जातीय सफाया के षड्यन्त्र कराके मधेशियों पर फिर लूटपाट और आक्रमण नहीं होने की गारन्टी करती है?
  5. क्या वह मधेश के काम-काज और नौकरियाँ मधेशी को ही मिलने की गारन्टी करती है? कि बाहर से नेपाली लोगों को बुलाकर दी जाएगी?
  6. क्या वह मधेश की सम्पूर्ण आय और दाता राष्ट्रों से प्राप्त अनुदानों का समुचित भाग मधेश में लगानी होने की गारन्टी करती है? कि मधेश को खाली विश्व बैंक और एडीबी का ऋण ढोना पड़ेगा?
  7. क्या वह देश भीतर और बाहर रहे मधेशियों की पहचान की समस्या को समाधान करेगी? क्या तब धोती, इंडियन और मर्सिया कहके नहीं बुलाया जाएगा?
  8. क्या वह मधेश के साधन-स्रोत, जल, जमीन और जंगल पर पूर्णत: मधेशियों का अधिकार होने की गारन्टी करती है?
  9. क्या वह मधेश की नागरिकता, सुरक्षा और वैदेशिक नीति मधेशियों के हाथों में होने की गारन्टी करती है?
  10. क्या वह मधेश से नेपाली सेना पूर्णत: हटाकर पूर्ण मधेशी सेना बनाने की गारन्टी करती है? नहीं तो कभी भी नेपाली सेना को परिचालन करके केन्द्रीय नेपाली सरकार कुछ भी कर सकती है, कोई संविधान भी लागू कर सकती है, कुछ भी नियम-कानून लगवा सकती है। केन्द्रीय सरकार आपातकालीन स्थिति की घोषणा करके मधेशियों के सम्पूर्ण अधिकार मिनट भर में ही निलम्बन कर सकती है। क्या इसे हम अपनी उपलब्धि मानें? क्या इसे हम सम्पूर्ण मधेशियों के बलिदान और संघर्ष का मोल माने?
तो ऊपर की १० आधारभूत और महत्त्वपूर्ण बातों में से कितनी बात संघीयता या आजादी के अलावा कोई अन्य राजनैतिक व्यवस्था दिला सकती है? बताइए।
क्यों गांधी और मंडेला ने आजादी के बदले विलायत के अधीन में रहते हुए संघीयता को स्वीकार नहीं किया? देखिए ऐसी बातें कुछ आइएनजीओ और संघ-संस्थाएँ पत्र-पत्रिकाओं में उठवा देती हैं, उसके लिए फंड रिलिज कर देती हैं, और उस पर लोग भागते रहते हैं, होटल और रिसोर्ट में लेक्चर देते फिरते हैं। पर मधेशियों के लिए वह वास्तविक समाधान नहीं है।
जिज्ञासु:
क्या देश का नाम बदलने से नहीं होगा?
डॉ. सी. के. राउत:
क्या जहर की शीशी पर शर्बत का नाम लिखकर उसे सेवन करने से हम मरेंगे नहीं? आप ऊपर के ही १० सूत्रों को देखें कि क्या पूरा होगा, क्या नहीं।
जिज्ञासु:
ठीक है समझ गया। तो आप ही बताइए, आजाद होने पर क्या होगा?
डॉ. सी. के. राउत:
मधेश आजाद होने पर हमारा अपना सार्वभौम देश होगा, हमें आजादी मिलेगी, हमें किसी देश के गुलाम या दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर नहीं रहना पड़ेगा, हमारी अपनी पहचान होगी, अपना ऊँचा आत्मसम्मान होगा। मधेश में अपनी सेना और पुलिस होगी, अपना संविधान होगा, अपनी शासन-व्यवस्था और अपना प्रशासन होगा।
लगभग एक लाख मधेशियों को तो सेना में ही नौकरी मिलेगी, दूसरे एक लाख पुलिस में लगेंगे। प्रशासन में कई लाख मधेशियों को नौकरियाँ मिलेंगी।
हम अपनी समस्याओं का समाधान अपने हिसाब से कर पाएँगे। किसानों के लिए बीज, खाद, सिंचाई और राहत की व्यवस्था कर सकेंगे। मेहनत-मजदूरी की कमाई लूटकर पहाड़ नहीं जाएँगी। यही पर एक से एक अस्पताल, एक से एक कॉलेज, एक पर एक फैक्टरियाँ खुलेंगी; रोड, नहर और रेलवे बनेंगे।
विदेशी कोटा, छात्रवृत्ति, अनुदान सभी मधेश को मिलेंगे। मधेशियों के प्रति विभेद नहीं रह जाएगा। नेपाली पुलिस और प्रशासन के संरक्षण में नेपाली लोग मधेशियों पर आक्रमण करके उन्हें मिटाने की चेष्टा नहीं कर सकेंगे, जैसा कि नेपालगंज दंगे में हुआ था।

उपनिवेश बनानेवाला ब्रिटिश फार्मूला 

जनमत पार्टीका एजेण्डा: सुशासन, सेवा-प्रवाह, स्वायत्तता

जनमत पार्टीका एजेण्डा: सुशासन, सेवा-प्रवाह, स्वायत्तता । #cp #सुशासन: यसका तीन पक्षहरू छन्। कुनै पनि तहमा कुनै पनि स्तरको #भ्रष्टाचार हुनुहु...